Hindi Poem of Suryakant Tripathi “Nirala” “Ve Kisan Ki nayi bahu ki Aankhen ”, “वे किसान की नयी बहू की आँखें” Complete Poem for Class 10 and Class 12

वे किसान की नयी बहू की आँखें -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Ve Kisan Ki nayi bahu ki Aankhen – Suryakant Tripathi “Nirala”

 

नहीं जानती जो अपने को खिली हुई
विश्व-विभव से मिली हुई,
नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को,
नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,
वे किसान की नयी बहू की आँखें
ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें;
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.