Hindi Poem of Udaybhanu Hans “Jindagi phoos ki jhopadi“ , “जिंदगी फूस की झोपड़ी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जिंदगी फूस की झोपड़ी

Jindagi phoos ki jhopadi

रेत की नींव पर जो खड़ी है।

पल दो पल है जगत का तमाशा,

जैसे आकाश में फुलझ़ड़ी है।

कोई तो राम आए कहीं से,

बन के पत्थर अहल्या खड़ी है।

सिर छुपाने का बस है ठिकाना,

वो महल है कि या झोंपड़ी है।

धूप निकलेगी सुख की सुनहरी,

दुख का बादल घड़ी दो घड़ी है।

यों छलकती है विधवा की आँखें.,

मानो सावन की कोई झ़ड़ी है।

हाथ बेटी के हों कैसे पीले

झोंपड़ी तक तो गिरवी पड़ी है।

जिसको कहती है ये दुनिया शादी,

दर असल सोने की हथकड़ी है।

देश की दुर्दशा कौन सोचे,

आजकल सबको अपनी पड़ी है।

मुँह से उनके है अमृत टपकता,

किंतु विष से भरी खोपड़ी है।

विश्व के ‘हंस’ कवियों से पूछो,

दर्द की उम्र कितनी बड़ी है।

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