Hindi Poem of Vidyavati Kokila “Mujhko teri asti choo gai“ , “मुझको तेरी अस्ति छू गई” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मुझको तेरी अस्ति छू गई

Mujhko teri asti choo gai

मुझको तेरी अस्ति छू गई है

अब न भार से विथकित होती हूँ

अब न ताप से विगलित होती हूँ

अब न शाप से विचलित होती हूँ

 जैसे सब स्वीकार बन गया हो।

मुझको तेरी अस्ति छू गई है।

पर्वत का हित मुझको जड़ न बनाता

प्रकृति हृदय का तम न मुझको ढँक पाता

आज उदधि का ज्वार न मुझे डुबोता

जैसे सब शृंगार बन गया हो।

मुझको तेरी अस्ति छू गई है।

दरिद्रता का यह मतवाला नर्तन

पीड़ाओं का उसमें आशिष-वर्षन

तेरी चितवन का जो मूक प्रदर्शन

तेरी मुख-अनुहार बन गया हो।

मुझको तेरी अस्ति छू गई है।

 

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