Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Sacchi Lagan Kya Nahi Kar Sakti” , “सच्ची लगन क्या नहीं कर सकती” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

सच्ची लगन क्या नहीं कर सकती

Sacchi Lagan Kya Nahi Kar Sakti

 

 

द्रोणाचार्य उन दिनों हस्तिनापुर में गुरुकुल के बालक पांडव एवं कौरवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दे रहे थे|

 

एक दिन एक काले रंग का पुष्ट शरीर वाला भील बालक उनके समीप आया| उसने आचार्य के चरणों में प्रणाम करके प्रार्थना की, मेरा नाम एकलव्य है| मैं इस आशा से आया हूं कि आचार्य मुझ पर अनुग्रह करेंगे और मुझे अस्त्र संचालन सिखाएंगे|

 

आचार्य को उस बालक की नम्रता प्रिय लगी, किंतु राजकुमारों के साथ वे एक भील-बालक को रहने की अनुमति नहीं दे सकते थे|

 

उन्होंने कह दिया, केवल द्विजाति ही किसी भी गुरुगृह में लिए जाते हैं| आखेट के योग्य शस्त्र-शिक्षा तो तुम अपने गुरुजनों से भी पा सकते हो| अस्त्र-संचालन की विशिष्ट शिक्षा तुम्हारे लिए अनावश्यक है| प्रजापालन एवं संग्राम जिनका कार्य है, उसके लिए ही उसकी आवश्यकता होती है|

 

एकलव्य वहां से निराश होकर लौट गया| किंतु उसका उत्साह नष्ट नहीं हुआ| उसमें अस्त्र-शिक्षा पाने की सच्ची लगन थी| वन में उसने एकांत में एक कुटिया बनाकर द्रोणाचार्य की मिट्टी की प्रतिमा, जो उसने स्वयं बनाई थी, स्थापित कर दी और स्वयं धनुष-बाण लेकर उस प्रतिमा के सम्मुख अभ्यास करने में जुट गया|

 

द्रोणाचार्य एक बार अपने शिष्यों के साथ वन में घूमते हुए निकले| पांडवों का एक कुत्ता उनके साथ से अलग होकर वन में उधर चला गया, जिधर एकलव्य लक्ष्यवेध का अभ्यास कर रहा था| कुत्ता उस काले भील को देखकर भौंकने लगा| उसके भौंकने से एकलव्य के कान में बाधा पड़ी, इसलिए उसने बाणों से उस कुत्ते का मुख भर दिया| इससे घबराकर कुत्ता पांडवों के समीप भाग आया|

 

सभी पांडव तथा कौरव राजकुमार कुत्ते की दशा देखकर हंसने लगे| किंतु अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ| कुत्ते के मुख में इस प्रकार बाण मारे गए थे कि कोई बाण उसे चुभा नहीं था, किंतु उसका पूरा मुख बाणों से ठसाठस भर गया था| इतनी सावधानी और शीघ्रता से बाण मारना कोई हंसी-खेल नहीं था| आचार्य द्रोण भी उस अद्भुत धनुर्धर की खोज में निकल पड़े, जिसने यह आतर्कित कार्य साध्य कर दिखाया था|

 

द्रोणाचार्य को देखते ही एकलव्य दौड़कर उनके चरणों में गिर पड़ा| उनकी कुटिया में मिट्टी की बनी अपनी ही प्रतिमा देखकर आचार्य चकित हो उठे| किंतु इसी समय अर्जुन ने धीरे से उनसे कहा, गुरुदेव ! आपने वचन दिया था कि आपके शिष्यों में मैं सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होऊंगा, किंतु इस भील के सम्मुख तो मेरा हस्तलाघव नगण्य है| आपके वचन…|

 

आचार्य ने संकेत से ही अर्जुन को आश्वासन दे दिया| एकलव्य से उन्होंने गुरु दक्षिणा की मांग की और जब उसने पूछा, कौन-सी सेवा करके मैं अपने को धन्य मानूं?

 

तब आचार्य ने बिना हिचके कह दिया, अपने दाहिने हाथ का अंगूठा मुझे दे दो|

 

अनुपम वीर, अनुपम निष्ठावान एकलव्य अनुपम धीर भी सिद्ध हुआ| उसने तलवार उठाकर दाहिने हाथ का अंगूठा काटा और आचार्य के चरणों के पास उसे आदरपूर्वक रख दिया| अंगूठे के कट जाने से वह बाण चलाने योग्य नहीं रह गया| बाएं हाथ से बाण चला देने पर भी वह धनुर्धरों की गणना में कभी नहीं आ सका| किंतु धनुर्धर होकर विख्यात होने पर कितने दिन जगत उसको स्मरण करता| अपने त्याग के कारण, अपनी निष्ठा के कारण, तो एकलव्य इतिहास में अमर हो गया|

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.