Hindi Poem of Amir Khusro’“Bahut Kathin hai dagar panghat ki , “बहुत कठिन है डगर पनघट की” Complete Poem for Class 10 and Class 12

बहुत कठिन है डगर पनघट की -अमीर ख़ुसरो

Bahut Kathin hai dagar panghat ki – Amir Khusro

बहुत कठिन है डगर पनघट की।

 कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

 मेरे अच्छे निज़ाम पिया।

 कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

 ज़रा बोलो निज़ाम पिया।

 पनिया भरन को मैं जो गई थी।

 दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी।

 बहुत कठिन है डगर पनघट की।

 खुसरो निज़ाम के बलि-बलि जाइए।

 लाज राखे मेरे घूँघट पट की।

 कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

 बहुत कठिन है डगर पनघट की।

 

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