Hindi Poem of Anamika “Janam Le raha hai ek naya purush – 2“ , “जनम ले रहा है एक नया पुरुष-2 ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जनम ले रहा है एक नया पुरुष-2
Janam Le raha hai ek naya purush – 2

महाकाल सृष्टि का नौवाँ महीना है, छत्तीसवाँ महीना
मेरे भीतर कुछ चल रहा है
षड़यन्त्र नहीं, तन्त्र-मन्त्र नहीं,
लेकिन चल रहा है लगातार!

बढ़ रहा है भीतर-भीतर
जैसे बढ़ती है नदी सब मुहानों के पार!
घर नहीं, दीवार नहीं और छत भी नहीं
लेकिन कुछ ढह रहा है भीतर:

जैसे नई ईंट की धमक से
मानो ख़ुशी में
भहर जाता है खण्डहर!
देखो, यहाँ … बिलकुल यहाँ

नाभि के बीचो-बीच
उठते और गिरते हथौड़ों के नीचे
लगातार जैसे कुछ ढल रहा है
लोहे के एक पिण्ड-सा

थोडा-सा ठोस और थोड़ा तरल
कुछ नया और कुछ एकदम प्राचीन
पल रहा है मेरे भीतर,
मेरे भीतर कुछ चल रहा है

दो-दो दिल धड़क रहें हैं मुझमें,
चार-चार आँखों से
कर रही हूँ आँखें चार मैं
महाकाल से!

थरथरा उठें हैं मेरे आवेग से सब पर्वत,
ठेल दिया है उनको पैरों से
एक तरफ़ मैंने!

मेरी उसाँसों से काँप-काँप उठते हैं जंगल!
इन्द्रधनुष के साथ रंगों से
है यह बिछौना सौना-मौना!
जन्म ले रहा है एक नया पुरुष
मेरे पातालों से —

नया पुरुष जो कि अतिपुरुष नहीं होगा
क्रोध और कामना की अतिरेकी पेचिश से पीड़ित,
स्वस्थ होगी धमनियाँ उसकी
और दृष्टि सम्यक

अतिरेकी पुरुषों की भाषा नहीं बोलेगा
स्नेह-सम्मान-विरत चूमा-चाटी वाली भाषा,
बन्दूक-बम-थप्पड़-घुडकी-लाठी वाली भाषा,
मेरे इन उन्नत पहाड़ों से
फूटेगी जब दुधैली रौशनी
यह पिएगा!

अन्धियारा इस जग का
अंजन बन इसकी आँखों में सजेगा,
झूलेगी अब पूरी कायनात झूले-सी
फिर धीरे-धीरे खड़ा होगा नया पुरुष

प्रज्ञा से शासित संबुद्ध अनुकूलित,
प्रज्ञा का प्यारा भरतार,
प्रज्ञा को सोती हुई छोड़कर जंगल
इस बार लेकिन नहीं जाएगा ।

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