Hindi Poem of Ashniv Singh Chaohan “  Gali ki dhoop “ , “गली की धूल” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गली की धूल

 Gali ki dhoop

 

किया जिसने विखंडित घर

न भर पाती हमारे

प्यार की गगरी

पिता हैं गाँव

तो हम हो गए शहरी

गरीबी में जुड़े थे सब

तरक्की ने किया बेघर

खुशी थी तब

गली की धूल होने में

उमर खपती यहाँ

अनुकूल होने में

मुखौटों पर हँसी चिपकी

कि सुविधा संग मिलता डर

पिता की जिन्दगी थी

कार्यशाला-सी

जहाँ निर्माण में थे

स्वप्न, श्रम, खाँसी

कि रचनाकार असली वे

कि हम तो बस अजायबघर

बुढ़ाए दिन

लगे साँसें गवाने में

शहर से हम भिड़े

सर्विस बचाने में

कहाँ बदलाव ले आया?

शहर है या कि है अजगर

 

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