Hindi Poem of Bashir Badra “ Sar se chadar badan se kaba le gai”,”सर से चादर बदन से क़बा ले गई” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सर से चादर बदन से क़बा ले गई

 Sar se chadar badan se kaba le gai

सर से चादर बदन से क़बा ले गई

ज़िन्दगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई

मेरी मुठ्ठी में सूखे हुये फूल हैं

ख़ुशबुओं को उड़ा कर हवा ले गई

मैं समुंदर के सीने में चट्टान था

रात एक मौज आई बहा ले गई

हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये

क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई

चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा

एक लड़की तुम्हारा पता ले गई

मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है

ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई

 

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