Hindi Poem of Bashir Badra “Sisakte aab me kis ki sada he”,”सिसकते आब में किस की सदा है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सिसकते आब में किस की सदा है

 Sisakte aab me kis ki sada he

सिसकते आब में किस की सदा है

कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा

ख़ुदा चरो तरफ़ बिखरा हुआ है

समेटो और सीने में छुपा लो

ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है

पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है

बदन अपना सुनेहरा हो चला है

हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है

समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है

हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता

हवा के होंठ अक्सर चूमता है

मुझे उन नीली आँखों ने बताया

तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.