Hindi Poem of Bhagwati Charan Verma’“Tum Apni ho, jag apna hai , “तुम अपनी हो, जग अपना है ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

तुम अपनी हो, जग अपना है -भगवतीचरण वर्मा

Tum Apni ho, jag apna hai -Bhagwati Charan Verma

तुम अपनी हो, जग अपना है

 किसका किस पर अधिकार प्रिये

 फिर दुविधा का क्या काम यहाँ

 इस पार या कि उस पार प्रिये ।

 देखो वियोग की शिशिर रात

 आँसू का हिमजल छोड़ चली

 ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस

 दिन का रक्तांचल छोड़ चली ।

 चलना है सबको छोड़ यहाँ

 अपने सुख-दुख का भार प्रिये,

करना है कर लो आज उसे

 कल पर किसका अधिकार प्रिये ।

 है आज शीत से झुलस रहे

 ये कोमल अरुण कपोल प्रिये

 अभिलाषा की मादकता से

 कर लो निज छवि का मोल प्रिये ।

 इस लेन-देन की दुनिया में

 निज को देकर सुख को ले लो,

तुम एक खिलौना बनो स्वयं

 फिर जी भर कर सुख से खेलो ।

 पल-भर जीवन, फिर सूनापन

 पल-भर तो लो हँस-बोल प्रिये

 कर लो निज प्यासे अधरों से

 प्यासे अधरों का मोल प्रिये ।

 सिहरा तन, सिहरा व्याकुल मन,

सिहरा मानस का गान प्रिये

 मेरे अस्थिर जग को दे दो

 तुम प्राणों का वरदान प्रिये ।

 भर-भरकर सूनी निःश्वासें

 देखो, सिहरा-सा आज पवन

 है ढूँढ़ रहा अविकल गति से

 मधु से पूरित मधुमय मधुवन ।

 यौवन की इस मधुशाला में

 है प्यासों का ही स्थान प्रिये

 फिर किसका भय? उन्मत्त बनो

 है प्यास यहाँ वरदान प्रिये ।

 देखो प्रकाश की रेखा ने

 वह तम में किया प्रवेश प्रिये

 तुम एक किरण बन, दे जाओ

 नव-आशा का सन्देश प्रिये ।

 अनिमेष दृगों से देख रहा

 हूँ आज तुम्हारी राह प्रिये

 है विकल साधना उमड़ पड़ी

 होंठों पर बन कर चाह प्रिये ।

 मिटनेवाला है सिसक रहा

 उसकी ममता है शेष प्रिये

 निज में लय कर उसको दे दो

 तुम जीवन का सन्देश प्रिये ।

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