Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “ Kya harz he“ , “क्या हर्ज़ है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

क्या हर्ज़ है

 Kya harz he

 

विदा ले लें हम

एक सपने से

जो तुमने भी देखा था

और मैंने भी

दोनों के सपने में

कोई भी फ़र्क

नहीं था ऐसा तो

नहीं कहूँगा

फ़र्क था

मगर तफ़सील -भर का 

मूलतः

सपना एक ही था

शुरू हुआ था वह

एक ही समय

एक ही जगह

एक ही कारण  से

मगर उसे देखा था

दो आमने – सामने खड़े

व्यक्तियों ने

इसलिए

एक ने ज्यादातर भाग

इस तरफ़  का देखा

दुसरे ने उस तरफ का

एक ने देखा

जिस पर डूबते सूरज की

किरणें पर रहीं थीं

ऐसा एक

निहायत ख़ूबसूरत

चेहरा

लगभग

असंभव रूप से सही और

सुन्दर नाक घनी भौहें

पतले ओंठ

घनी और बिखरी

केश राशि

सरो जैसा क़द 

और आखें

मदभरी न कहो

मद भरने वाली तो

कह ही सकते हैं

और

दूसरों ने देखा

डूबते सूरज की तरफ़

पीठ थी  जिसकी

ऐसा एक व्याक्ति

लगभग बंधा हुआ- सा

अपने ही रूप की डोर से

सपने

लम्बे लगते हैं मगर वे

सचमुच लम्बे नहीं होते

हमारे लम्बे लगने वाले

सपने में

बड़ी- बड़ी घटनाएँ हुईं

डूबे बहे उतराये

हम सुख – दुख में

और फिर जब

सपना टूट गया

तो हमने

आदमी की तमाम जिदों की तरह

इस बात की जिद की

कि सपना हम देखते रहेंगे

मगर बहुत दिनों से

सोच रहा हूँ मैं

और अब

पूछ रहा हूँ तुमसे

क्या हर्ज़ है अगर अब

विदा ले लें हम उस सपने से

जो हमने सच पूछो तो

थोड़ी  देर एक साथ देखा

और जाग जाने पर भी

जिसे बरसों से

पूरी ज़िद के साथ

पकड़े हैं बल्कि

पकड़े रहने का बहाना किये हैं!

लगभग छै साल कहो

तब से एक कोशिश कर रहा हूँ

मगर होता कुछ नहीं है

काम शायद कठिन है

मौत का चित्र खींचना

मैंने उसे

सख्त ठण्ड की एक

रात में देखा था

नंग – धडंग

नायलान के उजाले में खड़े

न बड़े  दाँत

न रूखे केश

न भयानक चेहरा

ख़ूबसूरती का

पहरा अंग अंग पर

कि  कोई  हिम्मत न

कर सके

हाथ लगाने की

आसपास दूर तक कोई

नहीं था उसके सिवा मेरे

मैं तो ख़ूबसूरत  अंगों पर

हाथ लगाने के लिए

वैसे भी  प्रसिद्ध नहीं हूँ

उसने मेरी तरफ़  देखा नहीं

मगर पीठ फेरकर

इस तरह खड़ी हो गयी

जैसे उसने मुझे देख लिया हो

और

देर तक  खड़ी रही

बँध – सा गया था मैं

जब तक

वह गयी नहीं

देखता रहा मैं

उसके

पीठ पर पड़े बाल

नितम्ब पिंडली त्वचा का

रंग और प्रकाश

देखता रहा

पूरे जीवन को

भूलकर

और फिर

बेहोश हो गया

होश जब आया तब मैं

अस्पताल में पड़ा था

बेशक मौत नहीं थी वहां

वह मुझे

बेहोश होते देखकर

चली गई थी

तब से मैं

कोशिश कर रहा हूँ

उसे देखने की

लेकिन हर बार

क़लम की नोंक पर

बन देता है  कोई

मकड़ी  का जाला

या बाँध देता है

कोई चीथड़-सा

या कभी

नोक टूट जाती है

कभी एकाध

ठीक रेखा खींच कर

हाथ से छूट जाती है

लगभग छै साल से

कोशिश कर रहा हूँ मैं

मौत का चित्र

खींचने की

मगर होता कुछ नहीं है!

 

 

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