Hindi Poem of Budhinath Mishra “ Savan ki Ganga”,”सावन की गंगा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सावन की गंगा

 Savan ki Ganga

सावन की गंगा जैसी

गदराई तेरी देह ।

बिन बरसे न रहेंगे अब

ये काले-काले मेघ ।

मन की नाव बहक जाती

अक्सर जाने किस ओर

पाल बनी जब से तेरी

कोरे आँचल की कोर ।

पग-पग पर टोकता

उभरते भँवरों का सन्देह ।

बिन बरसे न रहेंगे अब

ये काले-काले मेघ ।

बड़े-बड़े चेतन मधुकर भी

कर बैठेंगे भूल

अधर बिखेरेंगे तेरे

जब पारिजात के फूल ।

थाले में परिचय के

पनपा है नन्हा-सा नेह ।

बिन बरसे न रहेंगे अब

ये काले-काले मेघ ।

सुलगे क्यों न छुअन की

पीड़ा में पल्लव का अंक

काँटों-से भी जहरीले होते

फूलों के डंक ।

तपती रेत डगर की

जलकर मन्मथ हुआ विदेह ।

बिन बरसे न रहेंगे अब

ये काले-काले मेघ ।

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