Hindi Poem of Nander Sharma “  Ganga bahti ho kyu”,”गंगा, बहती हो क्यूँ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गंगा, बहती हो क्यूँ

 Ganga bahti ho kyu

 

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार…

निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ?..

नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,

निर्लज्ज  भाव से , बहती हो क्यूँ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,

ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,

गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार …

निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ?

नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,

निर्ल्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार गंगा की धार,

निर्बल जन को, सबल संग्रामी, गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,

अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ?

व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,

व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ?

ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,.

गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं  हो क्यूँ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार …

निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिनजन,

अज्ञ विहिननेत्र विहिन दिक` मौन हो कयूँ?

व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,

व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोडती न क्यूँ?

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार…

निशब्द सदा ,ओ  गंगा तुम, बहती हो क्यूँ?

 

 

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