Hindi Poem of Gopal Singh Nepali “Tu padhti he meri pustak”,”तू पढ़ती है मेरी पुस्तक” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक

 Tu padhti he meri pustak

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ

तू चलती है पन्ने-पन्ने, मैं लोचन-लोचन बढ़ता हूँ

मै खुली क़लम का जादूगर, तू बंद क़िताब कहानी की

मैं हँसी-ख़ुशी का सौदागर, तू रात हसीन जवानी की

तू श्याम नयन से देखे तो, मैं नील गगन में उड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

तू मन के भाव मिलाती है, मेरी कविता के भावों से

मैं अपने भाव मिलाता हूँ, तेरी पलकों की छाँवों से

तू मेरी बात पकड़ती है, मैं तेरा मौन पकड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

तू पृष्ठ-पृष्ठ से खेल रही, मैं पृष्ठों से आगे-आगे

तू व्यर्थ अर्थ में उलझ रही, मेरी चुप्पी उत्तर माँगे

तू ढाल बनाती पुस्तक को, मैं अपने मन से लड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

तू छंदों के द्वारा जाने, मेरी उमंग के रंग-ढंग

मैं तेरी आँखों से देखूँ, अपने भविष्य का रूप-रंग

तू मन-मन मुझे बुलाती है, मैं नयना-नयना मुड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

मेरी कविता के दर्पण में, जो कुछ है तेरी परछाईं

कोने में मेरा नाम छपा, तू सारी पुस्तक में छाई

देवता समझती तू मुझको, मैं तेरे पैयां पड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

तेरी बातों की रिमझिम से, कानों में मिसरी घुलती है

मेरी तो पुस्तक बंद हुई, अब तेरी पुस्तक खुलती है

तू मेरे जीवन में आई, मैं जग से आज बिछड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

मेरे जीवन में फूल-फूल, तेरे मन में कलियाँ-कलियाँ

रेशमी शरम में सिमट चलीं, रंगीन रात की रंगरलियाँ

चंदा डूबे, सूरज डूबे, प्राणों से प्यार जकड़ता हूँ

तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँ ।

 

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