Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Samdhin meri rasbhini he“ , “समधिन मेरी रसभीनी है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

समधिन मेरी रसभीनी है
Samdhin meri rasbhini he

छह बच्चों की माँ है तो क्या,
मुँह पर उनके रंगीनी है,
समधिन मेरी रसभीनी है।

माथे पर बिंदिया चमचम है,
आंखों में मोटा काज़ल है
ओठों पर पानों की लाली
अंचल अब भी कुछ चंचल है।
मुस्कान बड़ी नमकीनी है
बातों में घुलती चीनी है।
समधिन मेरी रसभीनी है।

सम ‘धिन’ में, सम धा-धिन्ना में
सम किट में, सम किट-किन्ना में,
है विषम सिर्फ समधीजी से,
सम मिलता उनका जिन्ना में।
हां कहना उन्हें न आता है
ना में हां छिपी यकीनी है।
समधिन मेरी रसभीनी है।

समधिन लक्ष्मी की माया है
रिश्तेदारों पर छाया है
बहुओं की हैड मास्टरनी
लेकिन बच्चों की आया है।
गैरों को भारी पड़ती हों
पर अपने लिए महीनी है।
समधिन मेरी रसभीनी है।

दिख जाती-चाँद निकलता है
छिप जाती-नेह पिघलता है
सतराती-सिट्टी गुम होती
बतराती-अमृत मिलता है।
समधीजी तो प्राचीन हुए
समिधन ही नित्य नवीनी है।
रसभीनी है, नमकीनी है
बातों में घुलती चीनी है।
समधिन मेरी रसभीनी है।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.