Hindi Poem of Gopaldas Neeraj “Isiliye to nagar nagar“ , “इसीलिए तो नगर -नगर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

इसीलिए तो नगर -नगर

Isiliye to nagar nagar

इसीलिए तो नगर-नगर बदनाम हो गये मेरे आँसू

मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था|

जिनका दुःख लिखने की ख़ातिर

मिली न इतिहासों को स्याही,

क़ानूनों को नाखुश करके

मैंने उनकी भरी गवाही

जले उमर-भर फिर भी जिनकी

अर्थी उठी अँधेरे में ही,

खुशियों की नौकरी छोड़कर

मैं उनका बन गया सिपाही

पदलोभी आलोचक कैसे करता दर्द पुरस्कृत मेरा

मैंने जो कुछ गाया उसमें करुणा थी श्रृंगार नहीं था|

मैंने चाहा नहीं कि कोई

आकर मेरा दर्द बंटाये,

बस यह ख़्वाहिश रही कि-

मेरी उमर ज़माने को लग जाये,

चमचम चूनर-चोली पर तो

लाखों ही थे लिखने वाले,

मेरी मगर ढिठाई मैंने

फटी कमीज़ों के गुन गाये,

इसका ही यह फल है शायद कल जब मैं निकला दुनिया में

तिल भर ठौर मुझे देने को मरघट तक तैयार नहीं था|

कोशिश भी कि किन्तु हो सका

मुझसे यह न कभी जीवन में,

इसका साथी बनूँ जेठ में

उससे प्यार करूँ सावन में,

जिसको भी अपनाया उसकी

याद संजोई मन में ऐसे

कोई साँझ सुहागिन दिया

बाले ज्यों तुलसी पूजन में,

फिर भी मेरे स्वप्न मर गये अविवाहित केवल इस कारण

मेरे पास सिर्फ़ कुंकुम था, कंगन पानीदार नहीं था|

दोषी है तो बस इतनी ही

दोषी है मेरी तरुणाई,

अपनी उमर घटाकर मैंने

हर आँसू की उमर बढ़ाई,

और गुनाह किया है कुछ तो

इतना सिर्फ़ गुनाह किया है

लोग चले जब राजभवन को

मुझको याद कुटी की आई

आज भले कुछ भी कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा

नीरज से पहले गीतों में सब कुछ था पर प्यार नहीं था|

 

 

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