Hindi Poem of Ibne Insha “Dil ne hamare bethe bethe kese kese rog lagaye”,”दिल ने हमारे बैठे बैठे कैसे कैसे रोग लगाये” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

दिल ने हमारे बैठे बैठे कैसे कैसे रोग लगाये

 Dil ne hamare bethe bethe kese kese rog lagaye

दिल ने हमारे बैठे बैठे कैसे कैसे रोग लगाये

तुम ने किसी का नाम लिया और आँखों में अपनी आंसू आये

जितनी जुबानें उतने किस्से अपनी उदासी के कारण के

लेकिन लोग अभी तक यह सादा सी पहेली बूझ न पाए

इश्क किया है? किस से किया है? कब से किया है? कैसे किया है?

लोगों को इक बात मिली, अपने को तो लेकिन रोना आये

राह में यूँही चलते चलते उनका दामन थाम लिया था

हम उन से कुछ मांगें चाहें, हमसे तो यह सोचा भी न जाये

नज्म-ए-सहर के चेहरे से इंशा इतनी भी उम्मीदें न लगाओ

ऐसा भी हम ने देखा है अक्सर रात कटे और सुबह न आये

 

 

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