Hindi Poem of Nander Sharma “  Har liya kyo sheshav nadan”,”हर लिया क्यों शैशव नादान” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हर लिया क्यों शैशव नादान

 Har liya kyo sheshav nadan

 

हर लिया क्यों शैशव नादान?

शुद्ध सलिल सा मेरा जीवन,

दुग्ध फेन-सा था अमूल्य मन,

तृष्णा का संसार नहीं था,

उर रहस्य का भार नहीं था,

स्नेह-सखा था, नन्दन कानन

था क्रीडास्थल मेरा पावन;

भोलापन भूषण आनन का

इन्दु वही जीवन-प्रांगण का

हाय! कहाँ वह लीन हो गया

विधु मेरा छविमान?

हर लिया क्यों शैशव नादान?

निर्झर-सा स्वछन्द विहग-सा,

शुभ्र शरद के स्वच्छ दिवस-सा,

अधरों पर स्वप्निल-सस्मिति-सा,

हिम पर क्रीड़ित स्वर्ण-रश्मि-सा,

मेरा शैशव! मधुर बालपन!

बादल-सा मृदु-मन कोमल-तन।

हा अप्राप्य-धन! स्वर्ग-स्वर्ण-कन

कौन ले गया नल-पट खग बन?

कहाँ अलक्षित लोक बसाया?

किस नभ में अनजान!

हर लिया क्यों शैशव नादान?

जग में जब अस्तित्व नहीं था,

जीवन जब था मलयानिल-सा

अति लघु पुष्प, वायु पर पर-सा,

स्वार्थ-रहित के अरमानों-सा,

चिन्ता-द्वेष-रहित-वन-पशु-सा

ज्ञान-शून्य क्रीड़ामय मन था,

स्वर्गिक, स्वप्निल जीवन-क्रीड़ा

छीन ले गया दे उर-पीड़ा

कपटी कनक-काम-मृग बन कर

किस मग हा! अनजान?

हर लिया क्यों शैशव नादान?

 

 

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