Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Ashwathama”,”अश्वत्थामा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अश्वत्थामा

 Ashwathama

 

जरा सा घी दे दे माई!जरा सा माई दे दे घी!

मारता टीस घाव मेरा!

प्रभू कल्याण करे तेरा! जरा सा..

घरनिया निकली घर में से,

बटोही, घाव हुआ कैसे?

सबै करनी का फल आही!.. जरा सा

बड़ो ऊँचो-पूरो लरिका,

किन्तु मुख पीड़ा से मुरझा,

बात वह समझ नहीं पाई! जरा सा

खून और पीप रिसा आता,

बैद को जाकर दिखलाता!

न,इसकी दवा नहीं पाई!जरा सा..

कहाँ से चोट मिली भइया?

पुरानी कितनी हे दइया!

देख कर टूट रहा है जी!जरा सा..

हुआ विचलित देखे से मन,

कर रहा तू दिन-रात सहन,

किसी को दया नहीं आई?जरा सा..

न पूछो माँ, बस दे दो घी,

शान्त कुछ हो जायेगा जी!

व्याधि का पार नहीं कोई! जरा सा..

हथेली घी धर लौट चला,

देखती घरनी गया चला!

हिया में करुणा भर आई!जरा सा..

कौन यह और कहाँ रहता

भयानक पीड़ा को सहता!

कोइ तो बतला दे भाई! जरा सा..

अरे ऊ अश्वत्थामा रहे,

महाभारत का पापी अहै!

ज्योति-मणि थी मस्तक पाई! जरा सा

द्रौपदी ने तो जीने दिया,

किंतु अर्जुन ने दंडित किया!

काट शिरमणि ली ज्योतिमयी! जरा सा

द्रौपदी के पाँचहु बारे,

सोवते माँहि मारि डारे!

इहै गति है उस पातक की!जरा सा..

शाप है ई चिरकाल जिये,

कोटि बरसों तक ये दुख सहे!

न आये इसको मृत्यु कभी!जरा सा..

जनावत नहीं नाम अपुनो,

कहीं पहचान न ले कउनो!

व्याधि का अंत कहाँ इहकी!जरा सा..

प्रभो,करि देउ मुक्त लरिका!

घरनियां ने अस बात कही! जरा सा

कौन है इहाँ दूध का धुला,

बड़े ऊँचे -ऊँचन ने छला!

कलपती हुइ है मातु कृपी!जरा सा..

 

 

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