Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Halka Phulka”,” हल्का-फुल्का” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हल्का-फुल्का

 Halka Phulka

 

निकल आओ कमरे से बाहर ज़रा ,

इस खुली अगहनी धूप में बैठ लें!

खींच लें प्लास्टिकी कुर्सियाँ ,इस तरफ़

साथ चलती सड़क का किनारा मिले!

खिड़कियाँ कुछ खुली हैं घरों की अभी ,

झाँकती लड़कियों का नज़ारा मिले!

दूध के दाँत आगे के टूटे हुये

झर रही हैं हँसी की फुहारें बिखर ,

फूलवाली नई फ़्राक पहने हुये

एक बच्ची चली आ रही है इधर!

हाथ पकड़े हुये भाई थोड़ा बड़ा ,

दूसरे हाथ से है सम्हाले हुये  

पेट से खिसक आता पजामा ज़रा!

वाह, ठेले पे ,कैसी हरी औ’ भरी

ताज़ी  टूटी हुई वो मटर की फली!

हींग-ज़ीरा हरी मिर्च  से छौंककर ,

साथ में शाम की चाय अदरक डली!

आओ , छीलें मटर भी यहीं बैठ कर

और छिलके उधर डाल दें गाय को!

कोई पूछे कि क्या हो रहा है, कहें ,

‘देख ले आप ही ,पूछता काय को?’

धूप जब तक इधर से उधर तक चले

हम भी अपनी वहीं कुर्सियाँ खींच लें!

आज टालो नहाना ,जरूरी नहीं ,

एक दिन ताश की गड्डियाँ फेंट लें!

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