Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Samar shesh”,”समर-शेष” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

समर-शेष

 Samar shesh

 

मत छीनो मुझसे ये शब्द!

धरोहर है पीढ़ियों की .

शताब्दियों की, सहस्राब्दियों की.

बहुत कुछ खो चुकी हैं आनेवाली पीढ़ियाँ,

अब ग्रहण करने दो

मुक्त मन यह दाय!

उन्हें अतीत से मत काटो

कि उस निरंतरता से बिखर

वर्तमान का अनिश्चित खंड-भर रह जाएँ!

हम हम नहीं रहेंगे .

अपनी भाषा से कट कर

अतीत के सारे रागों से,

अपनी पहचान से दूर हो कर!

मत वंचित करों उन शब्दों से .

जिनका खोना हमारी व्याप्ति को ग्रस ले

और कुछ नहीं बचता है यहाँ

बस गूँज जाते हैं यही शब्द सारे भाव समेटे

उर- तंत्र को झंकृत करते

भाषा, जोड़ती है अतीत को वर्तमान से

व्यक्ति को व्यक्ति से, अंतः को बाह्य से,

काल की अनादि धारा से,

खंड को सान्त को अखण्ड-अनन्त करती हुई .

जीवन रस से आपूर्ण करती,

प्रातःसूर्य सी ऊर्जा से प्लावित कर

मन का आकाश दीप्त कर बीते हुए बोधों से!

वे दुरूह नहीं हैं.

एक जीवन्त लोक है शब्दों का .

शताब्दियों पहले

इन्हीं ध्वनियों के सहारे,

सारे अर्थ अपने में समेटे

यही तरंगें उनके मन में उठी होंगी,

अतीत के उन मनीषियों से जुड़ जाता है मन.

इन शब्दों के

अंकनों में समा जाती है

सुन्दरतम अनुभूतियाँ!

मात्र शब्द नहीं निषाद, क्रौंच और भी बहुत सारे,

ये दृष्य हैं .

मानस में आदि कवि को उदित करते .

जटा- कटाह,नवीन-मेघ- मंडली, विलोल-वीचि-वल्लरी

महाप्रतापी लंकेश्वर की साकार कल्पनाएँ!

‘अमर्त्य वीर पुत्र

को प्रशस्त पुण्य पंथ

पर चलने को पुकारते जयशंकर ‘प्रसाद’

नीर भरी दुख की बदली महादेवी की रूपायित करुणा

मेरे नगपति! मेरे विशाल

दिनकर का आवेग मानस को हिलोरें देता,

और नहीं तो जो तटस्थ है

समय, लिखेगा उनका भी अपराध

क्योंकि समर शेष है .

बहुत समर्थ हैं ये शब्द,

प्राणवंत और मुखर!

अंकित होने दो हर पटल पर

चिर-रुचिर जीवन्त भाषा में!

भाषा नहीं ध्वनित काल है यह,

जो पुलक भर देता है

मानस में,

अलभ्य मनोभूमियों तक पहुँचा कर

सेतु बन कर

दूरस्थ काल-क्रमों के बीच

और अखंड हो जाते हैं हम!

कवियों के उद्धरण.

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