Hindi Poem of Raghuveer Sahay “Nashe me daya “ , “नशे में दया” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

नशे में दया
Nashe me daya

मैं नशे में धुत था आधी रात के सुनसान में
एक कविता बोलता जाता था अपनी जान में

कुछ मिनट पहले किए थे बिल पे मैंने दस्तख़त
ख़ानसामा सोचता होगा कि यह सब है मुफ़्त

तुम जो चाहो खा लो पी लो और यह सिगरेट लो
सुन के मुझको देखता था वह कि अपने पेट को?

फिर कहा रख कर के सिगरेट जेब में मेरे लिए
आज पी लूँगा इसे पर कल तो बीड़ी चाहिए

एक बंडल साठ पैसे का बहुत चल जाएगा
उसकी ठंडी नज़र कहती थी कि कल, कल आएगा

होश खो बैठे हो तुम कल की ख़बर तुमको नहीं
तुम जहाँ हो दर असल उस जगह पर तुम हो नहीं

कितने बच्चे हैं? कहाँ के हो? यहाँ घर है कहाँ?
चार हैं, बिजनौर का हूँ, घर है मस्जिद में मियाँ

कोरमा जो लिख दिया मैंने तुम्हारे वास्ते
ख़ुद वो खा लोगे कि ले जाओगे घर के वास्ते?

सुन के वो चुप हो गया और मुझको ये अच्छा लगा
लड़खड़ा कर मैं उठा और भाव यह मन में जगा

एक चटोरे को नहीं उस पर तरस खाने का हक़
उफ़ नशा कितना बड़ा सिखला गया मुझको सबक़

घर पे जाकर लिख के रख लूँगा जो मुझमें हो गया
सोच कर मैं घर तो पहुँचा पर पहुँचकर सो गया

उठ के वह कविता न आई अक़्ल पर आई ज़रूर
उसको कितना होश था और मुझको कितना था सरूर

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.