Hindi Poem of Rakesh Khandelwal “Raat ne jo bansuri chodi , “रात ने जो बाँसुरी छेड़ी ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

रात ने जो बाँसुरी छेड़ी – राकेश खंडेलवाल

Raat ne jo bansuri chodi – Rakesh Khandelwal

 

रागिनी उल्लास के रह रह सुमन चुनने लगी है
रात ने जो बाँसुरी छेड़ी सुबह सुनने लगी है

प्रीत होकर मलयजी अब स्वप्न करती है सुनहरे
यामिनी-गंधा कली देती निरंतर द्वार फेरे
हर दिशा उमगी हुई है आस के अंकुर उपजते
और अंकित कर बहारों को हवा के साथ चलते

फिर बनी तारा चकोरी चाँद का दर्पण उठा कर
नयन में अपने रुपहरी स्वप्न फिर बुनने लगी है

पाटलों पर ले रही अँगड़ाइयाँ अब ओस आकर
रश्मियों को चूमती है स्वर्ण निर्झर में नहा कर
पाखियों के पंख से उड़ते हुए झोंके हवा के
झर रहे हैं पेड़ की शाखाओं से वे गुनगुनाते

आरती में गूँजती सारंगियों की तान लेकर
मुस्कुराहट की गली से धुन नई उठने लगी है

बिछ रही हैं पंथ में दरियां नये आमंत्रणों की
वाटिकाओं ने मधुप के साथ जो भेजे कणों की
टेरती है गुनगुनी सी धूप बासंती बहारें
झील को दर्पण बना कर रूप को अपने निहारें

उंगलियाँ थामे किसी ॠतुगंध वाली भूमिका की
यह शिशिर की पालकी अब द्वार से उठने लगी है.

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