Hindi Poem of Ramavtar Tyagi “Chandi ki urvashi na kar de , “चाँदी की उर्वशी न कर दे ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

चाँदी की उर्वशी न कर दे – रामावतार त्यागी

Chandi ki urvashi na kar de -Ramavtar Tyagi

 

चाँदी की उर्वशी न कर दे युग के तप संयम को खंडित
भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।

मैं मर जाता अगर रात भी मिलती नहीं सुबह को खोकर
जीवन का जीना भी क्या है, गीतों का शरणागत होकर,
मन है राजरोग का रोगी, आशा है शव की परिणीता
डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा ॥

सपनों का अपराध नहीं है, मन को ही भा गयी उदासी
ज्यादा देर किसी नगरी में रुकते नहीं संत सन्यासी
जो कुछ भी माँगोगे दूँगा ये सपने तो परमहंस हैं
मुझको नंगे पाँव धार पर आँखें मूँद भागना होगा ॥

गागर क्या है – कंठ लगाकर जल को रोक लिया माटी ने
जीवन क्या है – जैसे स्वर को वापिस भेज दिया घाटी ने,
गीतों का दर्पण छोटा है जीवन का आकार बड़ा है
जीवन की खातिर गीतों को अब विस्तार माँगना होगा ॥

चुनना है बस दर्द सुदामा लड़ना है अन्याय कंस से
जीवन मरणासन्न पड़ा है, लालच के विष भरे दंश से
गीता में जो सत्य लिखा है, वह भी पूरा सत्य नहीं है
चिन्तन की लछ्मन रेखा को थोड़ा आज लाँघना होगा ॥

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.