Hindi Poem of Ramnaresh Tripathi’“Atulniya jinke pratap ka, “अतुलनीय जिनके प्रताप का ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

अतुलनीय जिनके प्रताप का – रामनरेश त्रिपाठी

Atulniya jinke pratap ka – Ramnaresh Tripathi

 

अतुलनीय जिनके प्रताप का,

साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर।

 घूम घूम कर देख चुका है,

जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर।

 देख चुके है जिनका वैभव,

ये नभ के अनंत तारागण।

 अगणित बार सुन चुका है नभ,

जिनका विजय-घोष रण-गर्जन।

 शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,

जिनके दिव्य देश का मस्तक।

 गूँज रही हैं सकल दिशायें,

जिनके जय गीतों से अब तक।

 जिनकी महिमा का है अविरल,

साक्षी सत्य-रूप हिमगिरिवर।

 उतरा करते थे विमान-दल,

जिसके विसतृत वक्षस्थल पर।

 सागर निज छाती पर जिनके,

अगणित अर्णव-पोत उठाकर।

 पहुँचाया करता था प्रमुदित,

भूमंडल के सकल तटों पर।

 नदियाँ जिनकी यश-धारा-सी,

बहती है अब भी निशि-वासर।

 ढूँढो उनके चरण चिह्न भी,

पाओगे तुम इनके तट पर।

 सच्चा प्रेम वही है जिसकी

 तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर।

 त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,

करो प्रेम पर प्राण निछावर।

 देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है,

अमल असीम त्याग से विलसित।

 आत्मा के विकास से जिसमें,

मनुष्यता होती है विकसित।

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