Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Mere mahboob kahi aur mila kar mujh se“ , “मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से

 Mere mahboob kahi aur mila kar mujh se

ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही

तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही

मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से

बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी

सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ

उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी

मेरी महबूब पस-ए-पदर्आ-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा

तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता

मुदर्आ शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली

अपने तारीक मकानों को तो देखा होता

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