Hindi Poem of Shlabh Shri Ram Singh “ Pure hue pachas varsh“ , “पूरे हुए पचास-वर्ष” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

पूरे हुए पचास-वर्ष

 Pure hue pachas varsh

आज़ादी की पचासवीं सालगिरह पर एक कविता

नाश्ते के लिए भुनी हुई स्त्री का गोश्त लाया जाए

हाथ धोने के लिए अगवा किये गए

किसी बच्चे की खोपड़ी में लाया जाए ठण्डा पानी

शाल के बदले किसी निर्दोष नागरिक की चमड़ी लाई जाए

महामहिम परेड की सलामी लेने के लिए तैयार हो रहे हैं

भ्रष्ट्राचार  के पचास वर्ष पूरे हुए

बलात्कार और व्यभिचार के पचास वर्ष

पूरे हुए पचास वर्ष हत्या और हाहाकार के

मानवता के सारे प्रतिमान ढहाए गए

बहाए गए घडियाली आँसूं जार-जार

चढ़ाए गए आख़िरी ऊँचाई तक प्रार्थनाओं के स्वर

भगवानों के घर जलाए और गिराए गए

जी भर तबाह की गई दिलों की ख़ूबसूरती

वादियों और बस्तियों पर तैनात हुए सन्नाटे

गोलियों से खेले गए मज़हब और जबान के खेल

मेल बरकरार रखने के लिए हिन्दू-मुस्लिम -जैन-सिख ईसाई का

नारा लगते हुए ‘भाई-भाई’ का, पूरे हुए पचास वर्ष

सवाल उठाते-उठाते –

बोलियाँ नंगी हो गई हैं भाषाएँ छिनाल

मनों की सुन्दरता समाप्त हो गई हैं तनों के विज्ञापनों से

फिर भी कुछ लोगों के लिए

‘मचलती और झूमती हुई आ रही है आज़ादी ‘

बर्बादी का ऐसा बेशर्म जश्न कब और कहाँ मनाया गया है इतिहास में?

इस बीच लगातार हलाल हुए हैं भगत सिंहों के सपने

बिस्मिलों की तमन्नाएँ ,अशफ़ाक‍उल्लाओं के जज्बात

सुभाषों की ललकारें, गाँधीयों  के सन्देश और जयप्रकाशों की तड़प ,

हिंसा और हड़प के पैरोकारों का ध्यान नहीं गया उधर

कान नहीं गया किसी का दुर्घटना के इतनें कड़े कर्कश नाद पर

भविष्य के अन्धेरों से भयभीत –

रोशन उँगलियों की प्रतीक्षा करता रहा देश

आज़ादी के पहले की बात और थी, आज़ादी के बाद की और है

वह गुलामी का दौर था ,यह गुलामों का दौर है

वनों की हरियाली नष्ट की गई इस बीच

घोटा गया नदियों का गला

पहाड़ों  की खाल खींची गई पूरी बेरहमी के साथ

पशुओं की भूख तक भुनाई जा रही है शान से

ईमान के गले पर पाँव रख कर की जा रही है बेईमानी

जान और जहान से बड़ा हो गया है पैसा

काहे की देशभक्ति ,नैतिकता काहे की, न्याय कैसा?

ज्ञान के मंदिरों में गुंडे तैयार किए जा रहे हैं यहाँ

झकाझक परिधानों में विचर रहे हैं मूँछ मुंडे अपराधी

पूरा का पूरा मुल्क इनके बाप की जागीर हो जैसे

चारो ओर बोलबाला है तस्कर संस्कृति का

रिश्वत-कमीशन-हवाला और घोटाला है चारों ओर

और इस देश का परधान मन्तरी मजबूर है

मजबूर है हमारा सब से बड़ा और विश्वसनीय सन्तरी

एक सदा जीवित जन-संसार पर्दे के पीछे सरकाया जा रहा है

दरकाया जा रहा है देश का भूगोल अपनी इच्छा भर

दराँतियों से दराँतियाँ नहीं ,जातियों से जातियाँ भिड़ाई जा रही हैं

वर्ण-विद्वेष की लडाइयाँ लडाई जा रही हैं ,वर्ग-संघर्ष  के बदले

मूर्तियों की आड़ में जबरजोत की जंग जारी है

एक ख़तरनाक चुप्पी तारी है कश्मीर से कन्याकुमारी तक

उदार बनाये जाने के चक्कर में नगद से उधार होता जा रहा है देश

उधार होता जा रहा है विश्वबाज़ार में बदलते हुए ख़ुद को

जडी-बूटियों तक पर नहीं रह गया उसका अधिकार

नीम तक को लाकर पटक दिया है बाज़ार की चौखट पर

यह एक जीवित धिक्कार है हमारे लिए

पिछले पचास वर्षों में इस देश की अंतरात्मा सो गई है

गिद्धों और महागिद्धों की भूमि हो गई है इस देश की धरती

सोने की चिड़िया की जान साँसत में है

आफ़त में है कविता का एक-एक शब्द

भ्रष्टाचार -बलात्कार -व्यभिचार -हत्या

और हाहाकार के पचास वर्ष पूरे हुए

परेड की सलामी लेने के लिए तैयार हो रहे हैं

महामहिम

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.