Hindi Poem of Sumitranand Pant “Geet Vihag”, “गीत विहग” Complete Poem for Class 10 and Class 12

गीत विहग -सुमित्रानंदन पंत

Geet Vihag – Sumitranand Pant

ये गीत विहग उड़-उड़ जाते !

भावों के पंख लगे सुन्दर,
सपनों से रच संसार सुघर,

भरते उड़ान नभ को छूते
मेरे मन भीतर सुख पाते !

चमकीली रंगभरी आँखें,
रंगों में डूबी हैं पाँखें,

अपना नन्हा-सा कंठ खोल
मेरे स्वर में स्वर भर गाते !

खिल गया फूल जब तुम बोले,
कलियों ने भी घूँघट खोले,

भँवरा मधु पी चुपचाप रहा
तुम स्वर में मधु-रस भर लाते !

तुम धवल बनो हिम शिखरों-सा
गंभीर बनो जैसा सागर !

सहते जाओ जैसे अवनी
उड़ चलो परों को फहराते !

तुम साँस-साँस में गंध भरो,
जीवन का सब दु:ख शोक हरो,

अमृत बन जाये मरण तभी
जब तुम इन प्राणों में छाते !

ये गीत विहग उड़-उड़ जाते !

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