Hindi Poem of Sumitranand Pant “Machue ka Geet ”, “मछुए का गीत” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मछुए का गीत -सुमित्रानंदन पंत

Machue ka Geet – Sumitranand Pant

प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

तू इस जीवन के पट भीतर
कौन छिपी मोहित निज छवि पर?
चंचल री नव यौवन के पर,
प्रखर प्रेम के बाण!
प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

गेह लाड की लहरों का चल,
तज फेनिल ममता का अंचल,
अरी डूब उतरा मत प्रतिपल,
वृथा रूप का मान!
प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

आए नव घन विविध वेश धर,
सुन री बहुमुख पावस के स्वर,
रूप वारी में लीन निरन्तर,
रह न सकेगी, मान!
प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

नाव द्वार आवेगी बाहर,
स्वर्ण जाल में उलझ मनोहर,
बचा कौन जग में लुक छिप कर
बिंधते सब अनजान!
प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

घिर घिर होते मेघ निछावर,
झर झर सर में मिलते निर्झर,
लिए डोर वह अंग जग की कर,
हरता तन मन प्राण!
प्रेम की बंसी लगी न प्राण!

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