Hindi Poem of Suryakant Tripathi “Nirala” “Gahan hai yah andhkar ”, “गहन है यह अंधकार” Complete Poem for Class 10 and Class 12

गहन है यह अंधकार -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Gahan hai yah andhkar – Suryakant Tripathi “Nirala”

गहन है यह अंधकार;
स्वार्थ के अवगुंठनों से,
हुआ है लुंठन हमारा।

खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,
बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर
इस गगन में नहीं दिनकर;
नही शशधर, नहीं तारा।

कल्पना का ही अपार समुद्र यह,
गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह,
कुछ नहीं आता समझ में,
कहाँ है श्यामल किनारा।

प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की,
याद जिससे रहे वंचित गेह की,
खोजता फिरता न पाता हुआ,
मेरा हृदय हारा।

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