Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “ Jangal ke raja“ , “जंगल के राजा !” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जंगल के राजा !

Jangal ke raja

 

ओ मेरे राजा, सावधान!

कुछ अशुभ शकुन हो रहे आज l

जो दूर शब्द सुन पड़ता है,

वह मेरे जी में गड़ता है,

रे इस हलचल पर पड़े गाज l

ये यात्री या कि किसान नहीं,

उनकी-सी इनकी बान नहीं,

चुपके चुपके यह बोल रहे ।

यात्री होते तो गाते तो,

आगी थोड़ी सुलगाते तो,

ये तो कुछ विष-सा बोल रहे ।

वे एक एक कर बढ़ते हैं,

लो सब झाड़ों पर चढ़ते हैं,

राजा! झाड़ों पर है मचान ।

जंगलके राजा, सावधान!

ओ मेरे राजा, सावधान!

राजा गुस्से में मत आना,

तुम उन लोगों तक मत जाना;

वे सब-के-सब हत्यारे हैं ।

वे दूर बैठकर मारेंगे,

तुमसे कैसे वे हारेंगे,

माना, नख तेज़ तुम्हारे हैं ।

“ये मुझको खाते नहीं कभी,

फिर क्यों मारेंगे मुझे अभी?”

तुम सोच नहीं सकते राजा ।

तुम बहुत वीर हो, भोले हो,

तुम इसीलिए यह बोले हो,

तुम कहीं सोच सकते राजा ।

ये भूखे नहीं पियासे हैं,

वैसे ये अच्छे खासे हैं,

है ‘वाह वाह’ की प्यास इन्हें ।

ये शूर कहे जायँगे तब,

और कुछ के मन भाएँगे तब,

है चमड़े की अभिलाष इन्हें,

ये जग के, सर्व-श्रेष्ठ प्राणी,

इनके दिमाग़, इनके वाणी,

फिर अनाचार यह मनमाना!

राजा, गुस्से में मत आना,

तुम उन लोगों तक मत जाना ।

 

 

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