Hindi Poem of Budhinath Mishra “ Gandhi bani amrai”,”गंधी बनी अमराई” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गंधी बनी अमराई

 Gandhi bani amrai

भाँति-भाँति के इत्र बेचती

गन्धी बनी आज अमराई ।

महुए के रस में घुलते

सेमल के फाहे

चुनते-चुनते भटक गए

भोले चरवाहे ।

एक फूल रजनीगन्धा का

साँझ-सकारे

चैता की बहती स्वर-

लहरी में अवगाहे ।

नयन-नयन में धँसती जाती

तरुण कोपलों की अरुणाई ।

कुलदेवी की बाँह बँधे

‘सपता’ के डोरे

बनजारे की बाट रोकते

हरे टिकोरे ।

नाहक धूम मची विप्लव की

गाँव-गाँव में

वात्याचक्र जिधर उन्मद

गज-सा मुँह मोड़े ।

छीन लिया सर्वस्व नीम ने

देकर एक डाल बौराई।

झरते पत्तों से चिपकी

वे रस की बातें

लिखती रहीं जिन्हें गुपचुप

पिछली बरसातें ।

कुसमय सुलग उठी उत्कण्ठा

पुनर्मिलन की

पानी मोल बिक गई ये

चाँदी की रातें ।

दर्द उठा कुछ मीठा-मीठा

बढ़ी उदासी की गहराई ।

सहलाते हौले-हौले

पुरवा के झोंके

पर्त उधेड़े यादों की

कोयल बेमौक़े ।

बाग़-बग़ीचे बने

सदावर्ती मदिरालय

कौन कहाँ तक अपने

प्यासे मन को रोके!

बार-बार नीले दर्पण में

एक परी डूबी-उतराई ।

 

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