Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Kavi hu Prayogshil“ , “कवि हूँ प्रयोगशील” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कवि हूँ प्रयोगशील
Kavi hu Prayogshil

ग़लत न समझो, मैं कवि हूँ प्रयोगशील,
खादी में रेशम की गांठ जोड़ता हूँ मैं।
कल्पना कड़ी-से-कड़ी, उपमा सड़ी से सड़ी,
मिल जाए पड़ी, उसे नहीं छोड़ता हूँ मैं।
स्वर को सिकोड़ता, मरोड़ता हूँ मीटर को
बचना जी, रचना की गति मोड़ता हूँ मैं।
करने को क्रिया-कर्म कविता अभागिनी का,
पेन तोड़ता हूँ मैं, दवात फोड़ता हूँ मैं ॥

श्रोता हजार हों कि गिनती के चार हों,
परंतु मैं सदैव ‘तारसप्तक’ में गाता हूँ।
आँख मींच साँस खींच, जो भी लिख देता,
उसे आपकी कसम! नई कविता बताता हूँ।
ज्ञेय को बनाता अज्ञेय, सत्‌-चित्‌ को शून्य,
देखते चलो मैं आग पानी में लगाता हूँ।
अली की, कली की बात बहुत दिनों चली,
अजी, हिन्दी में देखो छिपकली भी चलाता हूँ।
मुझे अक्ल से आँकिए ‘हाफ’ हूँ मैं,
जरा शक्ल से जांचिए साफ हूँ मैं।
भरा भीतर गूदड़ ही है निरा,
चढ़ा ऊपर साफ गिलाफ हूँ मैं ॥

अपने मन में बड़ा आप हूँ मैं,
अपने पुरखों के खिलाफ़ हूँ मैं।
मुझे भेजिए जू़ में, विलंब न कीजिए,
आदमी क्या हूँ, जिराफ हूँ मैं ॥

बच्चे शरमाते, बात बकनी बताते जिसे,
वही-वही करतब अधेड़ करता हूँ मैं।
बिना बीज, जल, भूमि पेड़ करता हूँ मैं,
फूंक मार केहरी को भेड़ करता हूँ मैं।
बिना व्यंग्य अर्थ की उधेड़ करता हूँ, और
बिना अर्थ शब्दों की रेड़ करता हूँ मैं।
पिटने का खतरा उठाकर भी ‘कामरेड’
कालिज की छोरियों से छेड़ करता हूँ मैं॥

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