Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Jute chale gye“ , “जूते चले गए” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जूते चले गए
Jute chale gye

जी, कुछ भी बात नहीं थी,
अच्छा-बीछा घर से आया था।
बीवी ने बड़े चाव से मुझको,
बालूजा पहनाया था।

बोली थीं, “देखो, हंसी नहीं,
जब कभी मंच पर जाना तुम।
ये हिन्दी का सम्मेलन है,
जूतों को ज़रा बचाना तुम!”

“क्या मतलब?” तो हंसकर बोलीं-
“जब से आज़ादी आई है,
‘जग्गो के चाचा’ तुमने तो,
सारी अकल गंवाई है!

इन सभा और सम्मेलन में
जो बड़े-बड़े जन आते हैं।
तुम नहीं समझना इन्हें बड़े,
उद्देश्य खींचकर लाते हैं।

इनमें आधे तो ऐसे हैं,
जिनको घर में कुछ काम नहीं।
आधे में आधे ऐसे हैं,
जिनको घर में आराम नहीं।

मतलब कि नहीं बीवी जिनके,
या बीवी जिन्हें सताती है।
या नए-नए प्रेमीजन हैं,
औ’ नींद देर से आती है।”

मैंने टोका-लेक्चर छोड़ो,
मतलब की बात बताओ तुम!
लाओ, होती है देर, जरा
वह ओवरकोट उठाओ तुम।

“हे कामरेड, हिन्दीवालों की,
निंदा नहीं किया करते।
ये सरस्वती के पूत, किसी के
जूते नहीं लिया करते।

फिर सम्मेलन में तो सजनी
नेता-ही-नेता आते हैं,
उनको जूतों की कौन कमी!
आते-खाते ले जाते हैं।”

तो बोलीं, “इन बातों को मैं,
बिलकुल भी नहीं मानती हूँ,
मैं तुमको और तुम्हारे,
नेताओं को खूब जानती हूँ।

सच मानो, नहीं मज़ाक,
सभा में ऐसे ही कुछ आते हैं,
जो ऊपर से सज्जन लगते,
लेकिन जूते ले जाते हैं।

सो मैं जतलाए देती हूँ,
जूतों से अलग न होना तुम!
ये न्यू कट अभी पिन्हाया है,
देखो न इसे खो देना तुम!

उन स्वयंसेवकों की बातों पर,
हरगिज ध्यान न देना तुम।
ये लंबी-लंबी जेबें हैं,
जूते इनमें रख लेना तुम।”

पर क्या बतलाऊँ मैं साहब,
बीवी का कहा नहीं माना,
औरत कह करके टाल दिया,
बातों का मर्म नहीं जाना।

मैं कुछ घंटों के लिए लीडरी,
करने को ललचा आया,
जूतों को जेब न दिखलाई,
बाहर ही उन्हें छोड़ आया।

मैं वहां मंच पर बैठा, बस,
खुद को ही पंत समझता था,
पब्लिक ने चौखट समझा हो,
खुद को गुणवंत समझता था।

जी, जूतों की क्या बात, वहां
मैं अपने को ही भूल गया,
जो भीड़ सामने देखी तो
हिन्दी का नेता फूल गया।

पर खुली मोह-निद्रा मेरी,
तो उदित पुराने पाप हुए,
बाहर आ करके देखा तो
जूते सचमुच ही साफ हुए।

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