Hindi Poem of Nida Fazli “  Din salike se uga raat thikane se rahi”,”दिन सलीक़े से उगा, रात ठिकाने से रही” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

दिन सलीक़े से उगा, रात ठिकाने से रही

 Din salike se uga raat thikane se rahi

 

दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही

दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही

चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें

ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही

इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी

रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही

फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को

दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही

शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत

अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.