Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Bar Bar Aaunga”,” बार-बार आऊँगा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बार-बार आऊँगा

 Bar Bar Aaunga

 

वाचक –

आह, रक्त की प्यास न जाने, जाग जाग उठती क्यों,

जाने क्यों, शैतान उतर कर बार- बार आता है.

फिर प्राणों के प्यासे बन जाते हैं भाई-भाई,

उसी लाल लोहू से फिर इतिहास लिखा जाता है.

मौत नाचती उतर धरा पर, दिशा-दिशा थर्राती,

और गगन से उतरी आती महाअग्नि की होली,

बाल खोल, सिन्दूर पोंछ कर आर्तनाद कर उठती,

दुल्हन, जो चढ़ कर आई थी, अभी पिया की डोली

राजनीति क्या जनता की कीमत पर ही चलती है,

दुनिया की ताकत क्या केवल लोहू से चलती है?

वाचिका –

मानव के मन कोई शैतान छिपा बैठा है,

मौका पाते ही जो अपना दाँव दिखा जाता है,

सींगों से वह निर्माणों को तहस-नहस कर देता,

कठिन खुरों से सभी सभ्यता रौंद-रौंद देता है,

बे-लगाम हो दुनिया भर में कूद-फांद कर भारी,

जीवन के सारे मूल्यों को उलट-पलट देता है.

मानव का चोला उतार कर नग्न-नृत्य कर उठता,

न्याय और तर्कों की सुदृढ़ लगाम तोड़ देता है.

वाचक –

लज्जा और विचारों की प्राचीरें ढह जाती हैं,

लिप्सा औ’बर्रबरता सतहों तक उभरी आती हैं!

(भागते हुए केश खोले एक नारी का प्रवेश )

नारी –

ऐसा क्यों होता है? (तीखे स्वर में)क्यों?

मैं धरती पूछ रही हूँ!

मेरी छाती पर यह दानव लीला क्यों की जाती

मेरे तन को कौन तोड़ता, कोई तो उत्तर दो,

रात-रात भर पागल सी पीड़ाएं रह-रह रोतीं?

(धम-धम करते विज्ञान का आगमन)

संवेदनाहीन विज्ञान –

धरती, अब चुप रहो, शक्तिशाली मैं ही हूँ केवल,

और सभी को इस चुटकी में मसल उड़ा दूँगा मैं

जल में थल में और गगन में, अनुशासन मेरा ही,

सूरज-चाँद-सितारों पर भी कदम बढ़ा दूंगा मैं!

(कुछ देर निस्तब्धता )

वाचक –

युद्धों का अह्वान, बमों का भीषण-भीषण नर्तन,

और मनुष्य तुच्छ कीटों सा मसल दिया जाता है,

बड़े दानवी अस्त्र उतर आते हैं आग उगलते,

और चतुर्दिक् महाध्वंस गिद्धों सा मँडराता है!

वाचिका-

ग्राम-नगर वन पर्वत सब पर धुआँ मृत्यु का छाता,

कितने ईसा बुद्ध,गांधी अनजन्मे मर जाते,

लुंज-पुंज सी मानवता पशुओं-सा जीवन जीती!

संस्कृतियों के चिह्न नाश तक जा कर ही थम पाते!

धरती -तेज़ आवाज़ में -इसका जिम्मेदार कौन है,

इसका कारण क्या है?

सर्वनाश की आग कहाँ से कहां तलक फैली है?

विज्ञान –

अब आगे मत बोल धरा,

सब स्वाहा हो जाएगा,

फेंक चुनरिया हरियाली,

धर मिट्टी जो मैली है.

(पृष्ठभूमि से डपटती हुई गहरी आवाज़- )

खबरदार! खबरदार मुँह पर लगाम दो,

अरे अधम, मत बोलो.

अब आगे अपने दूषित मंतव्यों को मत खोलो

नया मनुज जन्मेगा, मैले माटी के आँचल में,

कमल खिलेंगे बार-बार कालों के सरिता जल में

जो अनुगामी रहे सुचिन्ता का, शुभ-आशंसा का,

क्योंकि दिव्यता का संदेसा पहले माटी पाती!

विज्ञान –

मैं हूँ.मैं क्या नहीं जानते, परम शक्तिशाली मैं!

नाच रहे मेरे इंगित पर समय पहरुए हारे,

धरती, तू हर बार बुद्ध सा कोई जन्मा देती,

सभी चौंक से जाते अब ये काम बंद कर सारे!

धरती –

और सृजन से कह दूं वह रुक जाए?

कभी निराश नहीं होतीं पर मेरी ये प्रक्रियाएँ

तू समझा, बस तुझ तक आकर ये विकास बस होगा.,

मानव का मानस आत्मा का नाम न रह पाएगा?

तू, नत होगा अंतर्तम के फूल खिलें विकसेंगे!

तू हत होगा एक दिवस, ये रुके कदम चल देंगे!

विज्ञान –

बस, ख़ामोश,और आगे मत बोल, कि मैं न रहूँगा.

मैं मानव की अमर प्यास में विद्यमान रहता हूँ

तू ऐसा मत सोच कि मेरा अंत कभी आएगा,

मैं भौतिकता के तट अंतः सलिला सा बहता हूँ!

मेरा अंत न होगा बुद्धि मुझे संरक्षण देगी,

धरा, समझ तू, मेरी सत्ता कभी नही बिखरेगी!

पृष्ठ-स्वर –

झूठ,मौत सबको आती है, चाहे जितना जी ले,

और प्यास भी एक दिवस सब ही की मिटजाती है.

विज्ञान-

नहीं अमर हूँ मैं,

मैंने वरदान यही पाया है.

धरती, तू है जब तक, मेरी मौत नहींआएगी!

(कुछ देर चुप्पी फिर पृष्ठभूमि से घंटों के स्वर, शंखनाद )

धरती –

फिर कोई जन्मा है, कोई फिर तन धर आया है.

कोई फिर से वह सँदेश ले जीवन वर आया है.

हो जाओ तैयार, उसी के हाथों हार तुम्हारी,

कोई फिर आया धरती पर ले अपने मंगल स्वर!

और उसी आभा से मिटनेवाला है अँधियारा!

विज्ञान-

नाम बताओ,

अरे नाम बतला दे मुझे धरित्री,

हत कर दूँगा उसे स्वयं इन शक्तिमान हाथों से,

बतला दे किसका शिशु, उसका अता-पता बतला दे.

या फिर कोई शिशु न बचेगा, मेरे आघातों से,

निपट प्रथम ही लूँगा उससे अपने इन हाथों से.

धरती –

कोई नाम नहीं होता, जब मनुज जन्म लेता है.

पता नहीं क्या नाम धरेगा उसका यह संसार.

हर शिशु है संदेश, विधाता भेज रहा है अविरल

कोई भाषा नहीं समझता सिर्फ समझता प्यार

द्वेष और रागों से ऊपर परमहंस सा आता,

वह निरीह सा प्राणी जो मानव की ही संतान.

उसे मार तुम नहीं सकोगे, हाथ काँप जाएँगे,

मोह-मुग्ध तुम ले न सकोगे वह नन्हीं सी जान.

(विज्ञान सिर पर हाथ मारता है)

विज्ञान -जन्म-मृत्यु का क्रम है,

फिर-फिर जन्म यहाँ होता है.

मर-मर कर मानव जी जाता, करने वह संधान.

दुर्बलता के चोर सदा ही छिपे घुसे हैं मन में,

बार-बार उभरेगा सिर को उठा-उठा शैतान.

स्वार्थ नेत्र की दृष्टि छीनने को तत्पर बैठा है,

अविचारों की क्रीड़ाएँ कब रुकीं किसी के रोके,

मनुज, तुम्हारी तृष्णा तुमको चुप न बैठने देगी,

और तुम्हारी मोहबुद्धि ही तुमको भटकाएगी.

उन्नति-सुख के स्वप्न तुम्हारे तुम्हें निगल जाएंगे,

ये धरती चुपचाप शून्यमें तिरती रह जाएगी!

(थोड़ी देर चुप्पी )

एक बालिका गाते हुए प्रवेश करती है-

गीत-

धूप और छाया है शीतल, जल औ’अन्न लिए ये भू-तल.

उर्वर माटी जीवन देती पवन सांस देता है अविरल!

दिन हैं और रात है, सूरज-चांद धरा के अपने,

कितना सुन्दर जीवन रे,

कैसे भविष्य के सपने!

(लाठी टेकती खाँसती एक वृद्धा का प्रवेश-)

धरती औ’धन,जिनका बँटवा राहै सदा अधूरा.

जीवन का आनन्द किसी ने समझ न पाया पूरा!

बालिका –

कितने हैं संबंध,परस्पर आकर्षण में बाँधे,

वृद्धा –

किन्तु विसंगति उनको देती कहाँ चैन से जीने.

सत्ता का मद सदा बुद्धि को कुंठित कर धर देता,

बालिका –

कोई भी उपाय या मारग इसका नहीं बचा क्या?

(पृष्ठभूमि से स्वर उभरते हैं )-

जब अतिचार बढ़ेगा, दानव जग अधिकार करेगा,

अंध-रूढ़ि का धूम दिशाओं को काला कर देगा,

धरती की माटी का कण-कण आकुल हो उमड़ेगा,

मानवता का धर्म न, हो केवल पाखंड बढ़ेगा,

मैं आऊँगा, मैं निरीह शिशु तन ले कर फिर जन्मूँगा,

मैं जो कृष्ण,बुद्ध था, ईसा था नानक का संदेशा

मैं केवल मनुजत्व, कि जिसने जीवन संगर जीता

भाव- बोध संतुलन धरे मैं बार-बार आऊँगा

इस धरती तल पर अंकित कर जाने युग की गीता!

(मंच के एक ओर से युवकों दूसरी ओर से युवतियों का प्रवेश -)

गान एवं नृत्य –

धरा का पुत्र मंगल गीत गाता है,

धरा की पुत्रियाँ कुंकुम लुटाती हैं,

नया युग आ गया, नया युग आ गया.

विहंगम शान्ति का अब पंख फैला कर उतरता है,

दिशाओं की अरुणिमा मुस्कराई है,

कि आँखें खोल कर पूरब दिशा देखो,

जहाँ पर नव-किरण सुप्रभात लाई है.

नया युग आ गया, नया युग आ गया.

सुचिन्ता -सत्य का चंदन लगा माथे,

कि समता और ममता के नयन खोले,

चरण में दीप बाले त्याग का उज्ज्वल,

नया युग आ गया, नया युग आ गया.

हँसेगी अब धरा आकाश झूमेगा,

सुनहरी बाल नाचे खलखिलाएगी,

कि फिर से जन्मता संदेश जीवन का

दुखों से दग्ध धरती शान्ति पाएगी!

नया युग आ गया, नया युग आ गया.

 

 

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