Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Pratham chand”,”प्रथम छंद” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

प्रथम छंद

 Pratham chand

 

वह प्रथम छंद,

बह चला उमड़ कर अनायास सब तोड़ बंध,

ऋषि के स्वर में वह लोक-जगत का आदि छंद!

जब तपोथली में जन-जीवन से उदासीन,

करुणाकुल वाणी अनायास हो उठी मुखर

क्रौंची की दारुण-व्यथा द्रवित आकुल कवि-मन

की संवेदना अनादि-स्वरों में गई बिखर .

अंतर में कैसी पीर, अशान्ति और विचलन

ऐसे ही विषम पलों में कोई सम्मोहन

स्वर भरता मुखरित कर जाता अंतर -विषाद

मूर्तित करुणा का निस्स्वर असह अरण्य रुदन,

तब देवावाहन – सूक्त स्तुतियाँ सब बिसार

कवि संबोधित कर उठा,’ अरे, ओ, रे निषाद..’

स्वर प्राणि-मात्र की विकल वेदना के साक्षी

शास्त्रीय विधानों रीति-नीति से विगत-राग.

जैसे गिरि वर से अनायास फूटे निर्झर

उस आदि कथ्य से सिंचित हुआ जगत-कानन,

कंपन भर गया पवन में जल में हो अधीर,

तमसा के ओर-छोर, गिरि वन, तट के आश्रम!

खोया निजत्व उस विषम वेदना के पल में

तब प्राणिमात्र से जुड़े झनझना हृदय- तार

उस स्वर्णिम पल में, बंध तोड़ आवरण छोड़

ऊर्जित स्वर भर सरसी कविता की अमिय-धार!

 

 

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