Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Sagar kanya”,”सागर-कन्या” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सागर-कन्या

 Sagar kanya

 

सागर की कन्या, विष बंधु तेहि नाते सों,

ताही सों बहिनी है रंभा अरु वारुणी,

वाके पिये होत मद, इह का पाये ही होत

कितै गुनी अधिक इह मद-संचारिणी!

टिकै कहूँ नाहीं, कभै इहाँ, कभै उहाँ,

इह के मन की तरंग, जौन भावे सो करति हैं!

पति कइस कहे कुछू,  बस्यो ससुरारै माहिं,

छीर-सिन्धु माँहिं आँख मूँदि के रहत है!

पुरातन पुरुष की वधू नवेली, अलबेली अहै

तासों ही ह्वै गईं ई चंचला विहारिणी!

जा के रतनारे नयनन के कटाच्छ ही ते

झूमि परे सोये हरि जाय शेष शैया पे!

जाके पास रहै ताके धरा पे न परत पाँय

मत्त हुई जात जन जाके अपनाये ते!

तिहूँ लोक जोहै मुख किरपा हित, देखे रुख

चाहे दीठ जाकी सदा सुख- संचारिणी!

देवि, कृपा दृष्टि मोंपे सदा ही बनायो,

हाथ जोरति, परति पाँय सीस झुका आपुनो,

तो सम न लीलामयी, मो सम पुकारी कौन

मेरो अपराध सारो तोहे ही ढाँपनो!

का कहौं तोहार गुण,  बानी को लाज लगे

मुक्त ह्वै लुटावति, ढरै जो काम दायिनी!

 

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