Hindi Poem of Rakesh Khandelwal “Bas panth tham gya , “बस पंथ थम गया ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

बस पंथ थम गया – राकेश खंडेलवाल

Bas panth tham gya – Rakesh Khandelwal

 

पांव हमारे ही अक्षम थे
उठे न पथ में एक कदम भी
और लगाते दोष रहे यह
मंज़िल का पथ स्वयं थम गया
किरण ज्योति की बो न सके हम
सूनी रही ह्रदय की क्यारी
यही एक कारण , आंगन में
सिर्फ़ बिखरता हुआ तम गया

असमंजस के श्यामपट्ट पर
बने न निर्णय के श्वेताक्षर
शंकायें जो कल घिर आईं
आईं फिर से आज उमड़ कर
जुड़ीं अनिश्चय के चौराहे
पर न कभी निश्चय की गलियां
ऊहापोहों के गमले में
उगी न संकल्पों की कलियां

और संजोई पूंजी में से
एक दिवस हो और कम गया
खड़े रहे हम ही राहों में
कहते हैं, बस पंथ थम गया

रहे बिखेरे अंगनाई में
संशय के बदरंग कुहासे
खड़े रहे देहरी को थामे
किसी प्रतीक्षा को दुलराते
इन्द्रधनुष चाहत के हमने
प्रश्न चिन्ह से रखे टांग कर
रहे ढूँढ़ते रेखाओं को
आईने से साफ़ हाथ पर

और संजोते रहे पोटली में
जो बिखरा हुआ भ्रम गया
पांव हमारे उठे नहीं, हम कहते
हैं बस पंथ थम गया

फूलों की हर गंध, नाम के
बिना द्वार से लौटा दी है
द्वार चांदनी आई तो बस
यही शिकायत की आधी है
बिकीं रश्मि जब बाज़ारों में
हम तटस्थ ही खड़े रह गये
मधुमासों को नीरस कहते
अपनी ज़िद पर अड़े रह गये

अस्त-व्यस्त यूँ हुई ज़िन्दगी
टूट बिखर कर सभी क्रम गया
पांव हमारे उठे नहीं, हम कहते
हैं बस पंथ थम गया

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