Hindi Poem of Rakesh Khandelwal “Grahan koi lag na paye , “ग्रहण कोई लग न पाये ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

ग्रहण कोई लग न पाये – राकेश खंडेलवाल

Grahan koi lag na paye – Rakesh Khandelwal

 

अर्चना की दीप तो तूने जलाया है उपासक
देखना अब वर्तिका पर ग्रहन कोई लग न पाये

प्राथमिक उपलब्धियों को ध्येय मत कर साधना का
जान ले तू मन लुभाती हैं हज़ारों व्यंजनायें
ध्यान विश्वामित्र होकर, केन्द्रित जब जब हुआ है
भंग करने को तपस्या, आईं तब तब मेनकायें

आहुति को आँजुरि में धड़कनों का भर हविष तू
तब सुनिश्चित साधना का साध्य तेरे पास आये

मिल रहा है जो प्रथम आव्हान पर तुझको पुजारी
है नहीं वह, साधना जिसके लिये तूने संवारी
कर स्वयं को ही हविष,तब ही चढ़ेगा अग्नि रथ पर
और पाये, कामना जिसके लिये रह रह पुकारी

लेखनी विधि की करे हस्ताक्षर तब शीश तेरे
और तू बन कर सितारा ध्रुव सरीखा जगमगाये

शीश पर तेरे सजा है जो मुकुट, केवल क्षणिक है
याचकों की बाध्यता ही प्रप्ति के पथ की बधिक है
यज्ञ करता पूर्ण जो भी है अधूरापन तपस्वी
मान ले पथ में सदा उपलब्धि से बाधा अधिक है

धैर्य रख कर एक ही पथ पर चलाचल ओ पथिक तू
हो नहीं विश्वास क्षय, चाहे समय नित आजमाये

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