Hindi Poem of Raskhan “  Gai dahai nay a pe kahu, “गाई दहाई न या पे कहूँ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

गाई दहाई न या पे कहूँ

 Gai dahai nay a pe kahu

 

गाई दहाई न या पे कहूँ,

नकहूँ यह मेरी गरी, निकस्थौ है।

धीर समीर कालिंदी के तीर,

टूखरयो रहे आजु ही डीठि परयो है।

जा रसखानि विलोकत ही सरसा ढरि,

रांग सो आग दरयो है।

गाइन घेरत हेरत सो पंट फेरत टेरत,

आनी अरयो है।

 

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