Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Mere sarkash tarane sun ke duniya ye samajhti he” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है

 Mere sarkash tarane sun ke duniya ye samajhti he

मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है

कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है

मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है

मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है

मेरी दुनिया में कुछ वक़’अत नहीं है रक़्स-ओ-नग़्में की

मेरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है

मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को

मैं जब तारों पे नज़रें गाड़कर आसूँ बहाता हूँ

तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं

तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिलमिलाता हूँ

कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है

तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूँ

मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़्ज़ारों से उल्फ़त है

मेरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता

मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने

मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नहीं सकता

जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है

मेरी बातों में रंगे-ए-पारसाई हो नहीं सकता

मेरे सरकश तरानों की हक़ीक़त है तो इतनी है

कि जब मैं देखता हूँ भूक के मारे किसानों को

ग़रीबों को, मुफ़्लिसों को, बेकसों को, बेसहारों को

सिसकती नाज़नीनों को, तड़पते नौजवानों को

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