Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Aksar ek vyatha“ , “अक्सर एक व्यथा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अक्सर एक व्यथा

 Aksar ek vyatha

अक्सर एक गन्ध

मेरे पास से गुज़र जाती है,

अक्सर एक नदी

मेरे सामने भर जाती है,

अक्सर एक नाव

आकर तट से टकराती है,

अक्सर एक लीक

दूर पार से बुलाती है ।

मैं जहाँ होता हूँ

वहीं पर बैठ जाता हूँ,

अक्सर एक प्रतिमा

धूल में बन जाती है ।

अक्सर चाँद जेब में

पड़ा हुआ मिलता है,

सूरज को गिलहरी

पेड़ पर बैठी खाती है,

अक्सर दुनिया

मटर का दाना हो जाती है,

एक हथेली पर

पूरी बस जाती है ।

मैं जहाँ होता हूँ

वहाँ से उठ जाता हूँ,

अक्सर रात चींटी-सी

रेंगती हुई आती है ।

अक्सर एक हँसी

ठंडी हवा-सी चलती है,

अक्सर एक दृष्टि

कनटोप-सा लगाती है,

अक्सर एक बात

पर्वत-सी खड़ी होती है,

अक्सर एक ख़ामोशी

मुझे कपड़े पहनाती है ।

मैं जहाँ होता हूँ

वहाँ से चल पड़ता हूँ,

अक्सर एक व्यथा

यात्रा बन जाती है ।

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