Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Mukti ki aakanksha “ , “मुक्ति की आकांक्षा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मुक्ति की आकांक्षा

Mukti ki aakanksha  

चिडि़या को लाख समझाओ

कि पिंजड़े के बाहर

धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,

वहाँ हवा में उन्हेंर

अपने जिस्मब की गंध तक नहीं मिलेगी।

यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,

पर पानी के लिए भटकना है,

यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।

बाहर दाने का टोटा है,

यहाँ चुग्गाह मोटा है।

बाहर बहेलिए का डर है,

यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्व र है।

फिर भी चिडि़या

मुक्ति का गाना गाएगी,

मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,

पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,

हरसूँ ज़ोर लगाएगी

और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

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