Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “ Suraj ko nahi dubne dunga“ , “सूरज को नही डूबने दूंगा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सूरज को नही डूबने दूंगा

 Suraj ko nahi dubne dunga

अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा।

देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं

मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं

और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर

खड़ा होना मैंने सीख लिया है।

घबराओ मत

मैं क्षितिज पर जा रहा हूँ।

सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा

मैं कंधे अड़ा दूंगा

देखना वह वहीं ठहरा होगा।

अब मैं सूरज को नही डूबने दूँगा।

मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो

तुम्हें मैं उतार लाना चाहता हूं

तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो

तुम जो साहस की मूर्ति हो

तुम जो धरती का सुख हो

तुम जो कालातीत प्यार हो

तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो

तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो

तुम्हें मैं उस रथ से उतार लाना चाहता हूं।

रथ के घोड़े

आग उगलते रहें

अब पहिये टस से मस नही होंगे

मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिये है।

कौन रोकेगा तुम्हें

मैंने धरती बड़ी कर ली है

अन्न की सुनहरी बालियों से

मैं तुम्हें सजाऊँगा

मैंने सीना खोल लिया है

प्यार के गीतो में मैं तुम्हे गाऊँगा

मैंने दृष्टि बड़ी कर ली है

हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊँगा।

सूरज जायेगा भी तो कहाँ

उसे यहीं रहना होगा

यहीं हमारी सांसों में

हमारी रगों में

हमारे संकल्पों में

हमारे रतजगों में

तुम उदास मत होओ

अब मैं किसी भी सूरज को

नही डूबने दूंगा।

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