Hindi Poem of Balkavi Beragi “ Ganne mere bhai  ”,”गन्ने मेरे भाई!” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गन्ने मेरे भाई!

Ganne mere bhai 

 

इक्ष्वाकु वंश के आदि पुरुष

गन्ने! मेरे भाई!!

रेशे-रेशे में रस

और रग-रग में

मिठास का जस

रखोगे

तो प्यारे भाई गन्ने!

इक्ष्वाकु वंश के आदर्श!!

तुम्हारा वही हश्र होगा

जो होता आया है–

पोरी-पोरी काटेंगे लोग तुम्हें

चूस- चूसकर खाएँगे

चरखियों में पेलेंगे

आख़िरी बूँद तक

निचोड़ेंगे

किसी भी क़ीमत पर

तुम्हें ज़िन्दा नहीं छोड़ेंगे

तुम्हारे वल्कल जैसे

छिलकों तक को सुखाएँगे

तुम्हारे ही रस से

गुड़ या शक्कर बनाने वाली

भट्ठी में ईंधन बनाकर

जलाएँगे।

तुम्हें कर देंगे राख

न तुम कुछ कर सकोगे

न कह सकोगे

अपनी ही मिठास की

आबरु के लिए

तुम ज़िन्दा नहीं रह सकोगे।

अपने जन्म से मृत्यु तक तुम्हें

यही सब

करना होगा

ये गुड़ और शक्कर

तुम्हारे बेटे-बेटी

अस्मिता तुम्हारी मिठास

जीवित रहे

इसलिए रग-रग, रेशा-रेशा

रंध्र-रंध्र

तुम्हें मरना होगा।

कोई नहीं मनाएगा

तुम्हारा जन्मदिन

या तो अपना

या अपने बाल-बच्चों

दोस्त-यारों,

नातेदारों, ख़ातेदारों

का मनाएगा

और एक-दूसरे का मुँह

मीठा करने-कराने की रस्म में

तुम्हारे बाल-बच्चों तक

को खाएगा।

रस और जस के साथ

जीना बहुत मुश्किल है

गन्ने! मेरे भाई!!

तुम्हारे रस पर

मैं निछावर

और तुम्हारे अनंत

उत्सर्ग भरे जस पर

हार्दिक बधाई!

 

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