Hindi Poem of Dushyant Kumar “ Apahij vyatha “ , “अपाहिज व्यथा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अपाहिज व्यथा

Apahij vyatha  

 

अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ,

तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ ।

ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है,

इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ ।

अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी,

उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ ।

वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं,

जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ ।

तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला,

तुम्हें क्या पता क्या सहन कर रहा हूँ ।

मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब,

तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ ।

समालोचको की दुआ है कि मैं फिर,

सही शाम से आचमन कर रहा हूँ ।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.