Hindi Poem of Sishan Saroj “Geet kavi ki vyatha“ , “गीत कवि की व्यथा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गीत कवि की व्यथा 2
Geet kavi ki vyatha 2

इस गीत कवि को क्या हुआ
अब गुनगुनाता तक नहीं

इसने रचे जो गीत जग ने
पत्रिकाओं में पढे़
मुखरित हुए तो भजन जैसे
अनगिनत होंठों चढे़

होंठों चढे़, वे मन बिंधे
अब गीत गाता तक नहीं

अनुराग, राग विराग
सौ सौ व्यंग-शर इसने सहे
जब जब हुए गीले नयन
तब तब लगाये कहकहे

वह अट्टहासों का धनी
अब मुस्कुराता तक नहीं

मेलों तमाशों में लिये
इसको फिरी आवारगी
कुछ ढूँढती सी दॄष्टि में
हर शाम मधुशाला जगी

अब भीड़ दिखती है जिधर
उस ओर जाता तक नहीं

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