Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Gopin ke adran ki bhasha“ , “गोपिन के अधरान की भाषा ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गोपिन के अधरान की भाषा
Gopin ke adran ki bhasha

ये अनुराग के रंग रंगी,
रसखान खरी रसखान की भाषा।
यामैं घुरी मिसुरी मधुरी,
यह गोपिन के अधरान की भाषा।
को सरि याकी करैं कवि ‘व्यास’
ये भाव भरे अखरान की भाषा।

सूर कही तुलसी नैं लही,
प्रभु पांयन सौं परसी ब्रजभाषा।
देव-बिहारी करी उर धारन,
मोतिन की लर-सी ब्रजभाषा।
भूषन पाय भवानी भई,
कवि ‘व्यास’ हिये हरषी ब्रजभाषा।
मतिराम के आनन में उमहीं,
घन आनंद ह्‌वै बरसी ब्रजभाषा।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.