Hindi Poem of Jagdish Gupt “  Suna he kabhi tumne rango ko”,”सुना है कभी तुमने रंगों को” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सुना है कभी तुमने रंगों को

 Suna he kabhi tumne rango ko

 

कभी-कभी

उजाले का आभास

अंधेरे के इतने क़रीब होता है

कि दोनों को अलग-अलग

पहचान पाना मुश्किल हो जाता है।

धीरे-धीरे

जब उजाला

खेलने-खिलने लगता है

और अंधेरा उसकी जुम्बिश से

परदे की तरह हिलने लगता है

तो दोनों की

बदलती हुई गति ही

उनकी सही पहचान बन जाती है।

रोशन अंधेरे के साथ

लाली की नामालूम-सी झलक

एक ऐसा रंग रच देती है

जो चितेरे की आँख से ही

देखा जा सकता है।

क्योंकि उसका कोई नाम नहीं होता।

फिर रंगों के नाम

हमें ले ही कितनी दूर जाते हैं?

कोश में हम उनके हर साये के लिए

सही शब्द कहाँ पाते हैं?

रंगों की मिलावट से उपजा

हर अन्तर, हर अन्तराल

एक नए रंग की सम्भावना बन जाता है

और अपना नाम स्वयं ही

अस्फुट स्वर में गाता है

कभी सुना है तुमने

प्रत्यक्ष रंगों को गाते हुए?

एक साथ स्वर-बद्ध होकर

सामने आते हुए?

 

 

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